Ek Ladki Ko Dekha Toh Aisa Laga Movie Review by Deepak Dua रिव्यू-‘एक लड़की…’ को दिमाग से नहीं, दिल से देखिए दीपक दुआ… किसी लड़की को देख कर मन में खिलते गुलाब, शायर के ख्वाब,उजली किरण, बन में हिरण,चांदनी रात… जैसी फीलिंग्स आने में कुछ अजीब नहीं है। लेकिन अगर किसी लड़की के लिए ये सारी फीलिंग्स किसी लड़के के नहीं बल्कि लड़की के मन में रही हों तो…? जी हां, यही इस फिल्म यानी ‘एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा’ की कहानी का मूल है कि इसमें नायिका को किसी लड़के से नहीं बल्कि एक लड़की से प्यार हुआ है। अब भले ही ये ‘प्यार’ उसके परिवार, समाज और दुनिया वालों की नज़रों में गलत हो और उनकी नज़र में यह लड़की ‘बीमार’ या ‘एब्नॉर्मल’, लेकिन सच यही है कि ऐसे भी लोग इस दुनिया में हैं और यह फिल्म इन्हीं लोगों के बारे में बात करती है-बिना किसी पूर्वाग्रह के, बिना किसी फूहड़ता के। समलैंगिकता की बात करती हमारे यहां की ज़्यादातर फिल्में या तो ऑफ बीट किस्म की रहीं हैं या फिर बी-ग्रेड वाली। ऐसे में डायरेक्टर शैली चोपड़ा धर तारीफ की हकदार हो जाती हैं कि उन्होंने बतौर निर्देशक अपनी पहली ही फिल्म में न सिर्फ इस किस्म के साहसी विषय को चुना बल्कि उस पर लोकप्रिय सितारों को लेकर मुख्य धाराके सिनेमा में इस कहानी को कहने की हिम्मत दिखाई। शैली और उनकी को-राइटर गज़ल धालीवाल की तारीफ इसलिए भी ज़रूरी है कि उन्होंने इस कहानी को न तो फूहड़ होने दिया, न उपदेशात्मक और न ही उन्होंने इसमें किसी किस्म के नारी-मुक्ति के झंडे लहराए। फिल्म में हंसी-मज़ाक का फ्लेवर रख कर जहां इसे भारी होने से बचाया गया है वहीं इस नाज़ुक विषय को उन्होंने कहीं पटरी से उतरने भी नहीं दिया है। इस फिल्म की कहानी को पंजाब के एक छोटे-से शहर …
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